
-डॉ. अशोक प्रियरंजन
सपनों में आकर बस जाता रूप तुम्हारा,
हर पल अपने पास बुलाता रूप तुम्हारा ।
कुछ खट्टी कुछ मिट्ठी यादें करती आंख मिचौली,
अक्सर पूरी रात जगाता रूप तुम्हारा ।
आंखें, खुशबू, ओंठ सलोने और चमकता चेहरा
कितने सारे रंग दिखाता रूप तुम्हारा ।
तुम आओ तो महके चंदन, तुम जाओ फैले सन्नाटा,
मुझको सम्मोहित कर जाता रूप तुम्हारा ।
अहसासों के फूल खिलाए, उम्मीदों की धरती पर,
रोज नए अरमान जगाता रूप तुम्हारा ।
मैं जानूं या मेरी आंखें ही सच को पहचानें,
तुम क्या जानो कैसा लगता रूप तुम्हारा ।
शब्द शब्द संगीत रचाते, मन की वीणा पर रंजन,
गीत, गजल खुद ही बन जाता रूप तुम्हारा ।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)
13 comments:
आंखें, खुशबू, ओंठ सलोने और चमकता चेहरा
कितने सारे रंग दिखाता रूप तुम्हारा ।
बहुत खूब!! बेहतरीन!
डाक्टर रँजन , आपने तकरीबन एक साल बाद ब्लॉग पर फ़िर से लिखना शुरू किया है , बहुत अच्छा लिखा है , कवितायें सकारात्मकता लिए हुए बहुत अच्छी बन पड़ीं हैं |
शुभकामनाएं
बहुत सुंदर और भावपूर्ण कविता लिखा है आपने जो दिल को छू गई! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है!
bahut sunder rachana .
आंखें, खुशबू, ओंठ सलोने और चमकता चेहरा
कितने सारे रंग दिखाता रूप तुम्हारा ।
Shrangaar ko aapne shabdon mein utaar diya hai ...lajawaab gazal hai .. har sher se ras tapakta ...
बहुत अच्छी रचना है , बधाई !!
बहुत खूबसूरत रचना !!
wah bahut suhana hai roop kavita ka.
शब्द शब्द संगीत रचाते, मन की वीणा पर रंजन,
गीत, गजल खुद ही बन जाता रूप तुम्हारा ।
खूब रचाई रूप माधुरी ने कवितायेँ ..!!
गीत, गजल खुद ही बन जाता रूप तुम्हारा ।
अच्छा चित्र है रंजन जी।
bhavanao v abhivyakti ka achcha samayojan.Behtareen prastuti.
bhavanao v abhivyakti ka achcha samayojan.Behtareen prastuti.
aajkal bahut ladkiyon ke upar hi likhte ho
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