-डॉ. अशोक प्रियरंजन
तैरते हैं
असंख्य सुनहरे सपने
बेशुमार ख्वाहिशें
जिंदगी के गीत
उम्मीदों के फूल
तुम्हारी आंखों में
जब भी झांका हूं
इन आंखों में
तो महसूस की है मैने
अथाह गहराई
उभरते देखे हैं
अनेक प्रश्न
जो रह जाते हैं हर बार
अनुत्तरित?
अक्सर झलकती है
कुछ पाने की खुशी
खो जाने का डर
अनहोनी की आशंका
लड़की होने की कसक
तुम्हारी आंखों में
हर दिन
भोर की पहली किरन के साथ
टूटते हैं सपने
खिलने लगती हैं उम्मीदें
मेरी आंखों से छिटककर
सपने बस जाते हैं
तुम्हारी आंखों में
(फोटो गूगल सर्च से साभार)
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4 comments:
बहुत सुन्दर, सर!!
इतना सुन्दर चित्र कि थोड़ी देर तक तो उसे ही देखती रह गयी फिर कविता पढ़ी तो चित्र का असर आँखों से मन में उतर गया।
Budaun wale kisi ko dekh kar accha laga. Dr Umesh Sharmaji ne aapke bare me bataya tha. regards
वाह बहुत ख़ूबसूरत रचना!
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