Saturday, February 13, 2010

तुम कितनी सुंदर हो


-डॉ. अशोक प्रियरंजन

जब भी होता हूं उदास
आसपास फैली होती हैं
जिंदगी की अनगिनत परेशानियां
तब जेहन में चमकती है
तुम्हारी मुस्कराहट
गालों पर रोशन दीये
दिल में उतर जाने वाली आंखें
मौन में भी गूंज उठता है
तुम्हारी आवाज का जादू
सांसों में महकने लगता है
तुम्हारा अहसास
गमक उठता है पूरा परिवेश
कहने लगता है जर्रा जर्रा
तुम कितनी सुंदर हो।

कभी कभी ऐसा भी होता है
मेरी बातें कर देती हैं तुम्हें उदास
आंखों में चमकती है नमी
आवाज में महसूस होता है ठंडापन
शब्दों में नहीं होता उत्साह
एक अजीब सा सन्नाटा
पसर जाता है तुम्हारे आसपास
लेकिन तुम सहज ही
धीरे-धीरे तोड़ देती हो
इस सन्नाटे को
जिंदगी फिर मुस्कराने लगती है
सचमुच
तुम कितनी सुंदर हो।

(फोटो गूगल सर्च से साभार)

10 comments:

M VERMA said...

लेकिन तुम सहज ही
धीरे-धीरे तोड़ देती हो
इस सन्नाटे को
जिंदगी फिर मुस्कराने लगती है
------
जिन्दगी को जब जिन्दगी का सम्बल मिलता है
तब कहीं नवसृजित जिन्दगी का फूल खिलता है.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर और सटीक रचना लिखी है आपने!
प्रेम दिवस की हार्दिक बधाई!

vandana gupta said...

bahut hi sundar rachna.......badhayi.

निर्मल गुप्त said...

सुन्दर प्रस्तुति.बधाई

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत भाव लिखे हैं ...

कडुवासच said...

... bahut sundar ... behatreen !!

वन्दना अवस्थी दुबे said...

एक अजीब सा सन्नाटा
पसर जाता है तुम्हारे आसपास
लेकिन तुम सहज ही
धीरे-धीरे तोड़ देती हो
इस सन्नाटे को
जिंदगी फिर मुस्कराने लगती है
सचमुच
तुम कितनी सुंदर हो।
बहुत सुन्दर. लेकिन आप है कहां?

deepa joshi said...

bahut sundar rachna likhi hai sir....

कविता रावत said...

bahut sundar pyari kavita...

Pratha Krishnan Swamy said...

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